रीवा जिले में कृषि उपज की विपणन व्यवस्था-एक अध्ययन
डाॅ. एन.पी. पाठक1, सुरेश कुमार मिश्रा2
1प्राध्यापक (व्यवसायिक अर्थशास्त्र), अ.प्र.सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
2शोधार्थी (व्यवसायिक अर्थशास्त्र), अ.प्र.सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
आधुनिक समय में किसी भी वस्तु का उत्पादन केवल उपभोग के लिए ही नहीं वरन् विक्रय के लिए भी किया जाता है। बडे़ पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन किए जाने से विपणन का क्षेत्र राष्ट्रीय से अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है। वर्तमान उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के युग में भी आर्थिक व्यवस्था का एक पहलू उत्पादन है तो दूसरा उसका विपणन है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि उपज के विपणन का भी उतना ही महत्व है जितना कृषि उपज के उत्पादन का, क्योंिक भारतीय कृषि का स्वरूप आर्थिक विकास के साथ-साथ बदलता जा रहा है। अतः वर्तमान में समस्या वस्तुओं के उत्पादन की न रहकर उसके विपणन की है। भारत में कृषि विपणन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि देश की श्रम शक्ति का 64ः भाग कृषि क्षेत्र से आजीविका प्राप्त करता है तथा सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का क्षत्रे का हिस्सा 20ः के लगभग है। आज बाज़ार तथा बाज़ार संबंधी क्रिया दोनों ही आर्थिक ढाँचे की महत्वपूर्ण क्रिया बन गई है। वर्तमान समय में कृषि का व्यावसायीकरण हो जाने से इसके विपणन की समस्या उत्पन्न हो गई है। यह कहना अनावश्यक नहीं होगा कि कृषि विपणनषका विकास कृषि के आधुनिकीकरण के लिए महत्वपूर्ण है। सुविकसित ग्रामीण बाज़ार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास संभव है।
KEYWORDS: कृषि उपज मण्डी, भूमि व्यवस्था, विपणन व्यवस्था, कृषि अर्थव्यवस्था।
भारत के आर्थिक विकास में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। वास्तव में ‘‘कृषि हमारे देश में केवल जीविकोपार्जन का साधन या उद्योग धंधा ही नहीं है, अपितु अर्थव्यवस्था की रीड़ की हड्डी है।’’ देश के उद्योग-धंधे, विदेशी व्यापार मुद्रा अर्जन, विभिन्न योजनाओं की सफलता एवं राजनैतिक स्थायित्व भी कृषि पर ही निर्भर है।
कृषि की गहनता, विधायन क्रिया तथा संग्रहण के विकास के साथ ही कृषि उत्पादन का विपणन अधिकाधिक महत्वपूर्ण हो गया है। कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषि विपणन का विकास होना भी आवश्यक है। उचित विपणन तथा वितरण व्यवस्था, वस्तुओं तथा सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक हो सकती है। जिससे अधिक उत्पादन की प्रेरणा भी प्राप्त होगी तथा मांग एवं पूिर्त दोनों में वृद्धि को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
इस प्रकार विकासोन्मुख कृषि में कृषि विपणन की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्रस्तुत शोध अध्ययन की दृष्टि से देखें तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में कृषि उपज का बाज़ार प्रमुख स्थान ले रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में निवेश करने वाली संस्थाएँ इस दिशा में अधिक रूचि ले रही है। कृषि में परम्परागत उपजों का स्थान गौण होता जा रहा है। रोज़गार सृजन, विदेशी मुद्रा अर्जन, मानव एवं प्राकृतिक संसाधनों के उपयुक्त विदोहन, प्राचीन भारतीय संस्कृति के पुनरूत्थान, मानव स्वास्थ्य के कल्याणार्थ तथा देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण हेतु जिस क्षेत्र को वर्तमान में सर्वाधिक सम्भावना सम्पन्न क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है।
कृषि संपूर्ण भारत में प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत आता है। ठीक उसी प्रकार रीवा में भी कृषि ही सबसे महत्वपूर्ण जीविका का साधन है। यहां की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या मुख्य रूप से कृषि पर ही आधारित है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जिले की संपूर्ण जनसंख्या का 78 प्रतिशत भाग गांवों में निवास करता है। जिनका सीधा अथवा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से संबंध कृषि से ही होता है। इसी कारण यहां की कृषि जिले के विकास का प्रमुख स्रोत भी माना जाता है। रीवा जिले में उपलब्ध भूमि का अधिकांश पहाड़ी है। जिसके कारण कृषि हेतु समतल भूमि का अभाव है। यहां की धरातलीय विषमता, मानसूनी जलवायु पर निर्भरता अविकसित तकनीक एवं आधुनिक कृषि यंत्रो व उपकरणों के अभाव में प्रदेश को इस क्षेत्र में वांछित सफलता नहीं मिल पाई जिले में कृषि उपयोगी भूमि अपेक्षाकृत कम है जो फसलों के उत्पादन को प्रभावित करती है। पर्वतीय तथा पठारी भागों में तीव्र होने से कृषि कार्य भी कठिन हो जाता है। जिले में औसत वर्षा की कमी कृषि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
रीवा जिले की भूमि व्यवस्था के अध्ययन के पूर्व ऐतिहासिक अध्ययन सर्वप्रथम आवश्यक है। उन्नत कृषि उत्पादन के लिए एक अच्छी भू-धारण प्रणाली का होना आवश्यक है। हम यह कह सकते है कि कृषि उत्पादन में स्थायी विकास के लिए यह पहली शर्त है कि भू-धारण के अंतर्गत हम देखते है कि कृषक के स्वामित्व में भूमि किन शर्तो में रहती है। तथा स्वामित्व में भूमि किन शर्तो में रहती है तथा स्वामित्व का महत्व क्या हो सकता है।
इस प्रकार कृषि उपज का विपणन रीवा जिले की कृषि अर्थव्यवस्था का प्रभावकारी तत्व है। प्रस्तुत शोध अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य म.प्र. में कृषि उपज की विपणन व्यवस्था का अध्ययन ही है। इस दृष्टि से रीवा जिले की दो प्रमुख फसलों गेहूँ एवं सोयाबीन को शोध अध्ययन का आधार बनाया गया है। इन फसलों का बाज़ार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय है। अतः जिले में चयनित कृषि उपज के क्षेत्र, उत्पादन एवं विपणन व्यवस्था, कीमतों में उच्चावचन, जिले की विभिन्न मण्डियों में कीमतों के बीच पारस्परिक संबंध, विपणन की बदलती प्रक्रिया, विपणन की समस्याओं एवं कठिनाइयाँ तथा निर्यात सम्भावनाओं आदि पर यह शोध अध्ययन आधारित है।
उद्देश्य:-
इस अध्ययन के मूल उद्देश्य निम्नानुसार है-
1. भूमि व्यवस्था के अंतर्गत भूमि सीमा कानून का क्रियान्वयन भू-समतलीकरण तथा भूमि रखरखाव में हुए परिवर्तन परिवर्द्धन की प्रक्रिया का आंकलन करना।
2. सिंचाई की उपलब्ध सुविधाएं तथा इस परिपेक्ष्य में निर्धारित अवधि के बाद कृषि सिंचाई सुविधाओं में हुए संरचनात्मक परिवर्तन का आंकलन करना।
3. रीवा जिले के विभिन्न ग्रामीण स्थिति का मूल्यांकन करना।
4. कृषि उद्योगों एवं व्यवसायिक क्षेत्रों में वनों के योगदान का मूल्यांकन करना।
5. कृषि एवं कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाओं को अनुमानित करना।
6. कृषि व्यवस्था तथा औद्योगिक विकास के क्षेत्रीय एवं जिला स्तरीय प्रकृति का मूल्यांकन करना।
7. कृषि की प्रकृति एवं विशिष्टाओं का सूक्ष्मतम उपयोग परीक्षण करते हुए कृषि विकास हेतु उचित नीति निर्धारण का औचित्य प्रतिपादित करना।
8. रीवा जिले के कृषि विपणन का ऐतिहासिक महत्व जानने का प्रयास करना।
9. रीवा जिले के कृषि विपणन उद्योगों को भारत के मानचित्र में लाने का प्रयास करना।
10. कृषि विपणन ग्रामीण क्षेत्र की उत्पदान क्षमता का नियोजन तथा नियंत्रण का अध्ययन करना।
11. सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि विपणन की वित्तीय संरचना, पूंजी विनियोग, लाभ देयता इत्यादि का अध्ययन करना।
12. कृषि विपणन के क्षेत्र में मौजूद समस्याओं का अध्ययन करना तथा ऐसे प्रभावी उपयों तक पहुंचने का प्रयत्न करना, जिसमें रीवा जिले के कृषि विपणन दिनों दिन विकसित होते रहें और कृषि विभाग को इससे लाभ मिलता रहें।
शोध प्रविधि:-
शोध या अन्वेषण किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए किया जाता है। ज्ञान की किसी भी शाखा में ध्यानपूर्वक नये तथ्यों की खोज के लिए किये गये अन्वेषण या परिक्षण को अध्ययन कहते है। ज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य अपरिहार्य है।
शोध कार्य में रीवा जिले कृषि अर्थव्यवस्था से संबंधित वास्तविक एवं विश्वसनीय आकड़ो को प्राप्त करने के लिये प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आकड़ों को एकत्र कर पूर्ण किया गया है। प्राथमिक आकड़े स्वयं कार्य स्थल एवं कृषि उपज मण्डी पर जाकर मूल स्रोतो से एकत्र किये गये हैं। जबकि द्वितीयक आंकड़े के लिये कृषि विपणन से संबंधित विभिन्न प्रकाशित-अप्रकाशित पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, शासकीय प्रतिवेदनों आदि से एकत्र कर प्रयोग किये गये हैं। इसके अतिरिक्त लाइब्रेरी, एवं इंटरनेट आदि का भी आकड़ें एवं विषय वस्तु से संबंधित स्टडी मटेरियल एकत्र करने में प्रयोग किया गया है।
कृषि उपज मण्डी समिति की आय की मदे:-
कृषि उपज मण्डी समिति को पिछले पांच वर्षों में विभिन्न स्त्रोतों से कितनी-कितनी आय प्राप्त हुई है, प्राप्त आय को किन-किन मदों पर खर्च किया गया है और इन वर्षों में बचत या घाटे की क्या स्थिति रही है। इन सभी बातो का अध्ययन निम्न शिर्षकांे के अंर्तगत किया जा रहा है। रीवा मण्डी समिति की पिछले पांच वर्षों की आय को निम्न तालिकाओं में दर्शायी गयी है-
तालिका क्रमांक-1 कृषि उपज मण्डी समिति रीवा की कुल आय एक दृष्टि में (रू. में)
|
Ø- |
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vU; vk; |
dqy vk; |
|
1- |
2015&2016 |
39166643 |
26967 |
1139327 |
40332937 |
|
2- |
2016&2017 |
56026088 |
28839 |
114969 |
56169896 |
|
3- |
2017&2018 |
51687923 |
24990 |
1176334 |
52889247 |
|
4- |
2018&2019 |
63119147 |
21450 |
1340295 |
64480892 |
|
5- |
2019&2020 |
74707695 |
96610 |
1955827 |
76760132 |
|
|
dqy |
284707496 |
198856 |
5726752 |
29063310 |
|
|
vkSlr |
97-96 |
0-07 |
1-97 |
4 |
स्रोत - कृषि उपज मण्डी समिति रीवा की लेखा पुस्तकांे से
मण्डी समिति रीवा को प्राप्त विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त आय का पूर्व में बिंदुवार अध्ययन किया जा चुका है। यहा इन्हंे सरलता से एक दृष्टि में समझने हेतू प्रस्तुत किया गया है। उपरोक्त तालिका और पूर्व के विवरण से स्पष्ट होता है की धार मण्डी को कुल आय का लगभग 97.96 प्रतिशत भाग मण्डी शुल्क से प्राप्त होता है। वर्तमान में मण्डी शुल्क की दर 2 प्रतिशत जो राज्य सरकार द्वारा कम करने की घोषणा की जा चुकी है। अतः कुल आय में मण्डी शुल्क का अति महत्वपूर्ण स्थान है।
कृषि उपज मण्डी की व्यय की मदे:-
मण्डी समिति को विभिन्न स्त्रोतों से जो आय होती है उन्हें कार्यालय भवन, मण्डी प्रांगण के विकास, कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते क्रेता विक्रेताओं को सुविधाए प्रदान करने आदि मदांे पर व्यय करती है। मण्डी समिति बोर्ड शुल्क के अलावा जो खर्च करती है। उसे इस मद के अंर्तगत रखा जाता है इसमे स्थापना व्यय, निर्माण कार्य पर व्यय, बैठको में उपस्थित होने पर देय भत्ते, अतिथियो पर खर्च, लेखन सामाग्री कार्यालय के वाहनो पर पेट्रोल व्यय, सामाजिक दृष्टिकोण से प्याऊ आदि का निर्माण एवं अन्य व्यय इस व्यय में शामिल होते है। इन रीवा मण्डी समितियों द्वारा पिछले 5 वर्षों में विभिन्न मदों पर किये गये व्ययों को निम्नलिखित तालिका में प्रदर्षित किया गया हैं।
तालिका क्रमांक-2 मण्डी समिति रीवा के विभिन्न 5 वर्षों के व्यय एक दृष्टि में
|
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|
2015&2016 |
4265958 |
10-93 |
17608 |
0-04 |
34732141 |
89-02 |
39015707 |
|
2016&2017 |
6669126 |
12-43 |
148500 |
0-27 |
46801160 |
87-28 |
53618786 |
|
2017&2018 |
7319922 |
13-84 |
1181330 |
2-23 |
44372572 |
83-92 |
52873824 |
|
2018&2019 |
8360601 |
13-52 |
500229 |
0-80 |
52957322 |
85-66 |
61818152 |
|
2019&2020 |
7783158 |
10-13 |
627651 |
0-81 |
68348166 |
89-04 |
76758975 |
|
;ksx |
34398765 |
12-11 |
2475318 |
0-87 |
247211361 |
87-02 |
289085444 |
स्त्रोत- कृषि उपज मण्डी समिति रीवा के लेखों से ।
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट हैं कि यह समिति अपने कुल व्ययों को स्थापना पर भुगतान, निर्मााण पर भुगतान तथा अन्य विविध व्ययों में विभाजित करती हैं। कुल व्ययों में विभिन्न मदों का महत्व लगभग समान हैं। पिछले 5 वर्षो में औसत रूप में कुल व्यय का लगभग 12.11 प्रतिशत भाग स्थापना भुगतान पर 0.87 प्रतिशत भाग निर्मााण भुगतान में तथा शेष 81.02 प्रतिशत भाग अन्य व्ययों पर खर्च किया गया हैं।
मण्डी समिति की आर्थिक स्थिति:-
विद्वानों का मत हैं कि व्यक्ति को उतने ही पैर पसारना चाहिये जितनी चादर लम्बी होती हैं, यह कथन मण्डी समितियों पर भी पूर्णतया लागू होता हैं, वैसे तो मण्डी समितियों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलवाना होता हैं। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये मण्डी को अनेक आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करनी होती हैं, जिनके लिये धन खर्च करना होता हैं। सुविधाओं को पूरा करने के लिये मण्डी समितियों द्वारा जो धन खर्च किया जाता हैं, उसकी पूर्ति के लिये समितियों को विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्ति के अधिकार भी दिये गये हैं। मण्डी का व्यवहार विवेकपूर्ण तभी माना जायेगा, जबकि आय की तुलना में उसके व्यय कम हो अर्थात समितियों को बचतों की ही प्राप्ति होना चाहिये। बचतों की मात्रा ही उनकी आर्थिक समितियों को बचतों की ही प्राप्ति होना चाहिये। बचतों की मात्रा ही उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढता या कमजोरी को प्रदर्षित करती हैं। मण्डी समिति रीवा की आर्थिक स्थिति को निम्नलिखित तालिका में दर्षाया गया हैं।
तालिका क्रमांक-3 कृषि उपज मण्डी मण्डी समिति रीवा की आर्थिक स्थिति
|
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dqy vk; :- esa |
dqy O;; :-esa |
Ckpr :- esa |
|
1 |
2015&2016 |
40332937 |
39015707 |
1317230 |
|
2 |
2016&2017 |
57200596 |
53618786 |
3581810 |
|
3 |
2017&2018 |
52889247 |
52873824 |
15423 |
|
4 |
2018&2019 |
64480892 |
61818152 |
2662740 |
|
5 |
2019&2020 |
76760132 |
76758975 |
1157 |
स्त्रोत- कृषि उपज मण्डी समिति रीवा के लेखों से ।
दी गई तालिका से निम्नलिखित बातें स्पष्ट हैं
(1) इस मण्डी समिति को पिछले 5 वर्ष में प्राप्त आय उसके व्ययों से अधिक रही हैं। अर्थात सभी 5 वर्षों में बचत की ही स्थिति रही हैं।
(2) इस मण्डी को वर्ष 2016-2017 में सर्वाधिक बचत प्राप्त हुई हैं, इस वर्ष में इसकी कुल बचत 3581810 रूपये थी।
(3) समिति को सबसे कम बचत वर्ष 2019-2020 में ही हुई हैं। इस वर्ष इसे मात्र 1157 रूपये की बचत हुई हैं।
(4) समिति के आय-व्यय के आंकडों पर दृष्टिपाल करने से यह स्पष्ट होता हैं की समिति की आर्थिक स्थिति सुदृढ हैं, क्योंकि उसने विभिन्न स्त्रोतों से पर्याप्त मात्रा में आय अर्जित करके सुविधाओं के विस्तार में आवश्यक वृद्धि की हैं।
(5) मण्डी समिति की श्रेणी निर्धारित करने के लिये यह देखा जाता हैं कि पिछले तीन वर्षों में उसकी कुल आय का औसत क्या रहा हैं। यदि कुल आय का औसत 7 लाख रूपये से अधिक हैं, तो उस मण्डी को ‘अ’ श्रेणी प्रदान की जाती हैं।
तालिका से स्पष्ट हैं कि मण्डी समिति को पिछले 3 वर्षों में प्राप्त आय का औसत 7.00 लाख रूपये से अधिक हैं, इसलिये इसे ’’अ’’श्रेणी प्रदान की गयी हैं।
कृषि वित्तीयकरण तथा रूपांतरण
सभी व्यवसायिक संस्थाओं के लिए वित्त की व्यवस्था परम आवश्यक हैं और कृषि क्षेत्र इसका कोई अपवाद नही है। समयानुकूल पर्याप्त व सस्ती साख की व्यवस्था कृषि क्षेत्र की प्रगति में महत्वपूर्ण आगत हैं। जिस प्रकार व्यवसायियों, को सभी व्यवसायिक क्रिया कलापों के संचालन एवं विस्तार के लिए वित्त की आवश्यकता होती है, उसी तरह से कृषकों से संबंधित विभिन्न कार्यो के लिए वित्त की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु, कृषि एवं कृषको की अपनी कुछ ऐसी विशिष्टताए होती हैं, जो इसकी वित्त एवं साख संबंधी आवश्यकताओं से अलग करती हैं। छोटे व निर्धन कृषकों की बचत करने की असमर्थता व निर्धनता के कुचक्र को देखते हुए संख्यात्मक साख का जन्म जर्मनी में हुआ। प्रत्येक कृषक परिवार, समध्यम वर्गीय, अथवा छोटे किसान अधिक निवेश के द्वारा नई तकनीक का लाभ उठाना चाहते हैं। अतएव, अधिक व सस्ती साख तथा पूंजी की उपलब्धता भारतीय कृषि के विकास में एक विशिष्ट स्थान पाती है। भारत जैसे अर्द्धविकसित व घनी आबादी वाले देश के लिए कृषि साख की समस्या साख प्रदान करने की नीतियों को अवलोकन करना मात्र नहीं है। इस समस्या को एक वृहद् परिवेश में समझना होगा, जिसके अन्तर्गत ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जनसंख्या का आर्थिक व सामाजिक स्तर, घरेलू पूंजी निर्माण में बाधाएं, उत्पादन व आवश्यक उपभोग कार्यो के लिए साख के परिमाण का निर्णय और उससे संबंधित तथ्यों व कारणो की जानकारी करती होगी। साधारणतया छोटी जोत आकार वाले भारतीय कृषक की आय जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक हो पाती हैं और उसको प्रत्येक फसल में खेती के कार्यो के लिए व आवश्यक उपभोग के लिए ऋण लेना पड़ता है। भू-राजस्व का भुगतान व पुराने ऋणों का परिशोधन, कृषि-उत्पादन संबंधी व्यय, औजार के क्रय तथा उपयुक्त मूल्य मिलने तक अनाज को रोक रखने के व्यय उत्पादक ऋण के उदाहरण हैं।
कृषि एवं कृषको की अपनी कुछ ऐसी विशिष्टताएं होती है, जो इसकी वित्त एवं साख की आवश्यकताओ को कृषि भिन्न क्षेत्रों की वित्त एवं साख संबंधी आवश्यकताओं से अलग करती है। कृषकों को कृषि कार्यो के लिए अथवा भूमि पर स्थायी सुधार करने के लिए पर्याप्त एवं सस्ती साख सुलभ नही है। कृषि वित्त की विद्यमान व्यवस्था अपर्याप्त तथा महंगी है। जिसके फलस्वरूप कृषि का विकास अवरूद्ध हो गया है। सरकार द्वारा कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बुनाई गई कोई योजना तभी सफल हो सकती है। जब कृषकों कोेे उचित समय पर पर्याप्त एवं सस्ती साख सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
रीवा जिले में यूनियन बैंक आॅफ इंडिया द्वारा कृषि क्षेत्र में विभिन्न वर्षो में प्रदत्त वित्तीय सुविधाएं
|
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|
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|
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||
|
1991&92 |
2012 |
126-22 |
1258 |
87-94 |
70 |
|
1999&2000 |
2920 |
237-85 |
805 |
178-14 |
75 |
|
2003&04 |
1510 |
305-50 |
1135 |
233-40 |
76 |
|
2007&08 |
2600 |
648-17 |
1310 |
960-19 |
148-14 |
|
2012&13 |
3055 |
1475-10 |
1188 |
869-71 |
58-96 |
|
2019&20 |
4671 |
2460-61 |
2383 |
2558-42 |
103-98 |
स्रोत:- यूनियन बैंक आॅफ इंडिया अग्रणी जिला कार्यालय (रीवा)
वार्षिक साख योजना (पत्रिका)
उपरोक्त तालिका द्वारा स्पष्ट है कि जिले में यू.बी.आई. बैंक कृषि क्षेत्र के लिए प्रतिवर्ष लक्ष्य निर्धारित करता है और उन लक्ष्यों के पूर्ति के सतत् प्रयास भी किये जाते है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1991-92 में कृषि क्षेत्र के लिए 2012 खाता धारकों के लिए निर्धारित लक्ष्य 126.22 लाख वितरण का लक्ष्य रखा गया, इसके विरूद्ध 1258 खाता धारको को 87.94 लाख की राशि वितरित की गई और इस उपलब्धि का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा। वहीं वर्ष 1999-2000 में लक्ष्य के अनुसार 2920 खाता धारको को 237.85 लाख रूपये की राशि वितरित का लक्ष्य रखा गया।
समस्याएं:-
कृषि उपज मण्डी समिति में क्रय संबंधी समस्याआंे से तात्पर्य क्रेताओं की समस्या से होता है। क्रेता समिति में वह पक्ष होता है जो मण्डी क्षेत्र में लायी गई कृषि उपज को क्रय करता है। इस क्रेता व्यापारी को मण्डी में कई असुविधाआंे एवं समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्रेता व्यापारियों द्वारा जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विक्रय संबंधी समस्याओं से तात्पर्य किसानांे तथा विक्रेता व्यापारियों की समस्याओं से है। क्रय विक्रय के अतिरिक्त कृषि उपज मण्डी समिति की कई अन्य प्रशासनिक समस्याए भी है जो कि कृषि विपणन को प्रभावित करती है। इन समस्याओं पर कृषकों का ध्यान नहीं जाता है। किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से ये प्रशासनिक समस्याएं विपणन प्रक्रिया में बाधक होती है।
सुझाव:-
कृषि उपज मण्डी समिति की कार्य प्रणाली के प्रति कृषकों की संतुष्ठि का अध्ययन’ के तीन पक्षों से सम्बधित है। क्रय अर्थात क्रेता व्यापारियांे से, विक्रय अर्थात कृषकों एवं विक्रेता व्यापारियों से तथा प्रशासन अर्थात मण्डी समिति स्वयं विवेचन के आधार पर इन विभिन्न समस्याओं के निवारण हेतू सुझाव की आवश्यकता है। जो निम्नलिखित बिन्दुवार सुझाए जा रहे है-
1. सुरक्षित प्रांगण की व्यवस्था
2. गाँवों से मण्डी तक आवागमन के लिए सड़कांे की व्यवस्था
3. मण्डी प्रांगण में तौल व्यवस्था,
4. उपज मूल्य का समय पर भुगतान हो,
5. मण्डी अधिकारियों की आवास व्यवस्था,
6. किसानां को कृषि के आधुनिक तरीकांे की जानकारी देना,
7. गाँवों में गोदामों की कमी की पूर्ति,
8. मण्डीयांे में कृषक संपर्क केन्द्र की व्यवस्था,
9. भण्डारण की सुविधा का विस्तार,
10. कृषकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था,
11. मण्डी का नित्य कार्यकलाप समय पर प्रारंभ हो,
12. विश्राम गृहों की व्यवस्था में सुधार,
13. मण्डी की सेवाएं मण्डी बोर्ड में विलीन करने बाबद
उपरोक्त सुझावों के अतिरिक्त मण्डी समिति को अपने प्रांगण में साफ-सफाई की उचित व्यवस्था करनी चाहिए दूषित पानी की निकासी के लिए आंतरिक नालियों का निर्माण करना चाहिए, किसानों के पशुओं के लिये पशु आहार एवं पानी की व्यवस्था होनी चाहिए और सबसे बड़ी बात यह कि अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना व्यवहार कृषकों के प्रति सरल एवं अपनत्व भरा होना चाहिए। कर्मचारियों को उच्च सेवा भावना का परिचय देते हुए आदर्श स्थापित करना चाहिए, ताकि उनके एवं कृषकों के बीच मधुर संबंध बने रहे।
निष्कर्ष:-
कृषि विपणन तकनीकी में सुधार, कृषि उत्पादन में वृद्धि, मध्यस्थों की समाप्ति, कृषि विनिमय हेतु वित्तीय सुविधाएॅ, कृषि उत्पाद मूल्य में वृद्धि तथा कृषि विपणन का व्यावसायिक कार्य, व्यवसायिक अनुभव, पूॅजी निवेश, छोटे कृषि व्यापारियों को संरक्षण कृषि के लिए वित्तीय सुविधाएॅ, व्यावसायिक प्रशिक्षण, यातायात का विकास, भण्डारण प्रक्रिया में सुधार, व्यावसायिक स्थिति का मूल्यांकन, मूल्य में स्थिरता जैसे अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। कृषि विपणन में जमाखोरी की समाप्ति, कृषि क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र मानने के साथ-साथ गांवो में कृषि उत्पाद के विक्रय हेतु आवश्यक सुविधाएॅ प्रदान करने का प्रयास होगा। कृषि विपणन क्षेत्र में सहाकरी समितियों के विकास हेतु कृषि विपणन क्षेत्र में सहकारी समितियों के विकास हेतु सरकारी एजेन्सी द्वारा कम मात्रा का पूर्व निर्धारण उत्पादक व व्यापारियों से कृषि आय में वृद्धि जैसे उपायों को अपनाने से कृषि विपणन तथा कृषि उपज में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी। कृषि उपकरणों वित्तीय सुविधाओं में वृद्धि के साथ ही अन्य आवश्यक मूलभूत सुविधाओं में विकास हेतु उपाय किये जायेगे। सहकारी विपणन व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया जाएगा उत्पादको को उचित मूल्य दिलाए जाने के साथ ही पूंजीवादी बाजार को रोकने का प्रयास किए जाएगा, साथ ही कृषि विपणन व्यवसाय का विस्तार किया जाएगा, विस्तार के साथ ही देश वे अन्य विकसित राज्यों की कृषि विपणन के समान किया जाएगा।
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Received on 20.12.2022 Modified on 16.01.2023
Accepted on 28.01.2023 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2022; 10(4):192-198.